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जब जागो तभी सवेरा है

कहना है
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जब जागो तभी सवेरा है
रौशनी कम घना अँधेरा है
टूटे दरख्तों से आती रही रौशनी
चारों तरफ खुशबुओं का डेरा है
जिन्दगी की दुश्वारियों से कब तक लड़ें हम
अपनों का अब नहीं बसेरा है
वीरानियों में गूंजती रही आवाजें
हर फ़जां में पर्बतों का डेरा है
हमसफ़र हमकदम साथ न चले हम तुम
इक राह तेरा इक राह मेरा है
जब जागो तभी सवेरा है
रौशनी कम घना अँधेरा है
कितने दिन बीते कोई रहगुजर नहीं
वीरानियों में भूतों का डेरा है
तेरी जहाँ से है कायनात रौशन
जिंदगी की सांझ अब सवेरा है
मुर्दों के शहर में हमीं रहे जिन्दा
कोई कह दे ये कैसा सवेरा है
जागी आँखों में दिखाई देते सपने
बंद आखों में आंसुओं का डेरा है
दौलत के ढेर पे किस्मत को बदलते देखा
कहीं उजाला कहीं अँधेरा है
जब जागो तभी सवेरा है
रौशनी कम घना अँधेरा है
जहाँ होना था वहां हो न सके हम
किस्मत का चारों ओर घेरा है
हर मुकां आसां से नहीं मिलती ‘राजीव’
रात बीता हुआ सवेरा है.

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