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लो एक और वर्ष बीत गया
जिन्दगी का हिसाब किताब लगाके रखना
क्या खोया,क्या पाया कुछ याद नहीं
उम्मीदों का चराग जलाये रखना
टिमटिमाती दिये को बुझा देते हैं हवा के झोंके
हथेलियों में लौ को छुपाये रखना
दूर कहीं गूंजी कोयल की कूक
अश्कों से दामन को भिंगोकर रखना
वक्त बड़ा बेरहम है नहीं सुनता फरियादें
बीती हुई यादों को सीने से लगाये रखना
खतो-किताबत का अब न रहा वो जमाना
वो पीले लिफाफों को किताबों में छुपाकर रखना
यादों के नश्तर दिल में चुभ जाये न कहीं
अपने जख्मों को सबसे छुपाकर रखना
भींगी आँखें बता देती हैं दिल के राज
हाले दिल सबसे न बयां करना
दिल के दरवाजे पे कोई दस्तक देता ही नहीं
अपने अरमानों को सुलगने से बचाए रखना
आँखों में संजोये सपने,दिल में बसाये अरमां
पूरा होने का सबब है,खुशियों को छिपाए रखना
अंतिम प्रहर होने को है,कारवां छूटा ‘राजीव’
यादों के उजाले को सीने से लगाये रखना
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