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सृजनशीलता बनाम शौचालय

कहना है
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सुना है रेलवे ने ऐसा पेंट विकसित किया है जिसका उपयोग करने के बाद ट्रेनों में पेन या पेन्सिल से कुछ नहीं लिखा जा सकेगा.अब ट्रेन की बोगियां ऐसे पेंट से रंगी जा सकेंगी जिससे ट्रेनों में अश्लील बातें नहीं लिखी जा सकेंगी. इससे मुसाफिरों खासकर महिलाओं को आसानी होगी.प्रायः ट्रेनों के शौचालयों में ही व्यक्ति की सृजनशीलता का परिचय मिलता है.ऐसी ऐसी काव्यात्मक बातें यात्री लिख डालतें हैं कि बड़े बड़े कवि भी शरमा जाएँ.ऐसी ऐसी कलाकृति उकेर डालतें हैं कि मरहूम हुसैन साहब भी शरमा जाएँ.

वैसे बड़े बड़े कलाकारों,विचारकों को नया आईडिया अक्सर शौचालयों में ही मिलता है.गणितज्ञों को बड़ी बड़ी पहेली सुलझाने का फ़ॉर्मूला शौचालयों में ही मिलता है.ऐसे में यदि यात्री ट्रेनों में सफ़र के दौरान शौचालयों में अपनी सृजनशीलता का परिचय देने लगे तो क्या अचरज.ऐसे वक़्त में व्यक्ति को शील या अश्लील का होश ही कहाँ रहता है.सफ़र काटने और वक़्त बिताने का इससे अच्छा तरीका और क्या हो सकता है.महिलाओं को यदि इससे परेशानी हो तो कौन क्या कर सकता है.रेल प्रशासन चाह कर भी ऐसी कलाकृति के सृजन पर रोक नहीं लगा सकता क्योंकि कब और कौन इसे सृजित कर गया इसका पता ही नहीं चल पाता.

एक सुझाव रेलवे को यह भी दिया जा सकता है कि वह सभी ट्रेनों में शौचालय गार्ड की नियुक्ति करे.इससे हजारों लोगों को रोजगार भी मिल जाएगा और यात्री की सृजनशीलता भी बची रहेगी जो बाद में काम आएगी.क्या पता इनमे से कोई दूसरा हुसैन निकल आये या मशहूर कवि ही बन जाये.

सो रेलवे कई उपायों को आजमा सकता है.हो तो यह भी सकता है कि इसके लिए रेलवे शौचालय गार्ड की नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकाले जिसमे स्थानीय युवको को ही प्राथमिकता दे ताकि दूसरे राज्यों में जाकर मार खाकर नहीं आना पड़े.रेलवे चाहे तो इसकी आउटसोर्सिंग भी करवा सकता है,जिससे उसे नियुक्ति का झमेला न सहना पड़े और काम भी हो जाये.इसके लिए रेलवे दो रूपये का शौचालय उपयोग शुल्क भी लगा सकता है,सुलभ शौचालय की तरह.इससे रेलवे की आमदनी भी बढ़ेगी और घाटा पूरा करने में थोड़ी मदद भी.इससे आगामी यात्री किराये में वृद्धि कुछ दिनों के लिए और स्थगित हो सकती है.

सो विचार और सुझाव तो कई हैं,पर जब तक रेलवे इसे नहीं अपनाता तब तक सफ़र के दौरान ट्रेनों के शौचालयों में व्यक्ति की सृजनशीलता और कल्पनाशीलता को झेलते रहिये.

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