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शब्द अशेष
कहना है
36 Posts
813 Comments
इन प्रणय के कोरे कागज पर
कुछ शब्द ढले नयनों से
आहत मोती के मनकों को
चुग डालो प्रिय अंखियों से
कितने चित्र रचे थे मैंने
खुली हथेली पर
कितने छंद उकेरे तुमने
नेह पहेली पर
अवगुंठन खुला लाज का
बांच गए पोथी मन मितवा
जीत गई पिछली मनुहारें
खिले फूल मोती के बिरवा
भोर गुलाबी सप्त किरण से
मन पर तुम छाए
जैसे हवा व्यतीत क्षणों को
बीन – बीन लाए
बरसों बाद लगा है जैसे
सोंधी गंध बसी हों मन में
मीलों लम्बे सफ़र लांघकर
उम्र हँसी हों मन दर्पण में
नदिया की लहरों से पुलकित
साँझ ढले तुम आए
लगा कि मौसम ने खुशबू के
छंद नए गाए.
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mparveen
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