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फिर वही तलाश है

कहना है
कहना है
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Crowd

    अपनों के बीच अपनापन तलाशता हूँ
    मकानों के बीच घर तलाशता हूँ
    इतना खो गया हूँ दुनियाँ की भीड़ में
    खुद में ही खुद को तलाशता हूँ||


आजकल आदमी का हुलिया बदल गया है
अब आदमी के बीच आदमी को तलाशता हूँ
बहुत देखा है संबंधों की गहराई
अब सम्बन्ध में सम्बन्ध तलाशता हूँ ||

    इंसानियत तो अब दिखाई देता नहीं कहीं
    इंसानों के बीच इंसानियत तलाशता हूँ
    इस शहर में शीशे का घर मिलता नहीं कहीं
    हाथ में पत्थर लिए शीशे का घर तलाशता हूँ||


वफ़ा का दुनियाँ में तकाजा न रहा
बेवफाई में वफ़ा तलाशता हूँ
अंधेरों में जीना सीख लिया है ‘राजीव’
रौशनी में रौशनी को तलाशता हूँ||

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