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मन का चन्दन

कहना है
कहना है
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chandan[1]

    मन का चन्दन महक उठता है
    तन कस्तूरी लगता है
    दिल से दिल मिले यदि तो
    सारा जग अपना लगता है


तुम्हें देख कानन तरूवर
विहँसने का उपक्रम करते
क्यों शाख पे लिपटी लताएं
क्यों पवन मंद मंद बहते

    मरूस्थल में भी फूल खिलाना
    तुमको ही क्यों आते हैं
    झरने कैसे इठलाते हैं
    पंछी क्यों सुर में गाते हैं

      दसों दिशाओं से सुरभित
      मानव मन की कस्तूरी
      मन से मन यदि मिला रहे
      तो कहाँ किसी से यह दूरी


जीवन का व्यापार यही है
जग की सारी प्रणय कहानी
तुममें ही सब छिपा हुआ है
सकल जगत ने यह जानी

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