तनहा कट गया जिन्दगी का सफ़र कई साल का चंद अल्फाज कह भी डालिए अजी मेरे हाल पर मौसम है बादलों की बरसात हो ही जाएगी हंस पड़ी धूप तभी इस ख्याल पर
फिर कहाँ मिलेंगे मरने के बाद हम सोचते ही रहे सब इस सवाल पर खुशबुओं की राह से एक दिन गुजर गया कहाँ से आ गई ये राह दीवाल पर
शायद इन रस्तों से होकर ख्वाबों में गुजरे दिखे हैं मुझको सहरा चांद हर जर्रे पर आसमान थर्राता था जिन आवाजों की जुम्बिश पर बहरा चांद भी चुप है मेरी आवाजों पर
तेरा आँचल हवाओं में ऐसे लहराता है दिखे है लहरा चांद नदी के दर्पण पर और भी छलक जाती हैं निगाह मिलाकर हश्र तो ये है तुमसे मुलाकात पर
जिसे देखकर बढ़ी जाती है प्यास हर पल हाल तो ये है लगी झड़ी बरसात पर जरा गौर फरमाईए ‘राजीव’ की इस बात पर उस चांदनी रात का जिक्र क्यों न हो इस ख्याल पर
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